आहिस्ता चल ज़िन्दगी
कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है| कविता
आहिस्ता चल ज़िन्दगी
कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज़ निभाना बाकी है
रफ़्तार मे तेरे चलने से कुछ रूठ गए
कुछ छुट गए
रूठो को मनाना बाकी है
रोतो को हँसाना बाकी है
कुछ हसरते अभी अधूरी है
कुछ काम अभी और ज़रूरी है
ख्वाईशें जो घुट गयी है दिल मे
उनको दफनाना बाकी है
कुछ रिश्ते बन कर टूट गए
कुछ जुड़ते जुड़ते छुट गए
उन टूटे छूटे रिश्तों के ज़ख्मो को मिटाना बाकी है
तू आगे चल , मै आता हूँ
क्या छोड़ तुझे ज़ी पाऊँगा ?
इन साँसों पे हक़ है जिनका
उनको समझाना बाकी है
आहिस्ता चल ज़िन्दगी
कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है
.......गुलज़ार
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